– अब तक न बिजली का खंभा पहुँचा, न तार, न ट्रांसफार्मर
– हाँ, नेता ज़रूर पहुँचते हैं, हर पाँच साल में, वोट मांगने के लिए
सोनभद्र। कोन (मुन्ना लाल जायसवाल) देश आज़ादी के 75 साल पूरे कर चुका है। शहरों की गलियाँ रोशनी से जगमगा रही हैं, सरकारें हर घर तक बिजली पहुँचाने के दावे कर रही हैं। लेकिन सोनभद्र जिले के नवसृजित विकासखंड कोन की ग्राम पंचायत चांची कला का टोला खोंचा बैगा बस्ती अब भी अंधेरे में है। यहाँ न बिजली का खंभा पहुँचा, न तार, न ट्रांसफार्मर। लोग आज भी लालटेन और ढिबरी की रोशनी में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
तीन पीढ़ियाँ बीत गईं, रोशनी नहीं आई
बस्ती में करीब 25–30 परिवार रहते हैं, जो ज़्यादातर आदिवासी बैगा समुदाय से हैं। मिट्टी के घर, फूस की छतें और सूने आँगन इस गाँव की सच्चाई बयान करते हैं। बुज़ुर्ग लखन बैगा कहते हैं कि हमारे पिता कहते थे जल्द बिजली आएगी। अब हमारे बाल सफेद हो गए, लेकिन खंभा तक नहीं लगा। रात ढलते ही पूरा टोला अंधेरे में डूब जाता है। बच्चे लालटेन की रोशनी में पढ़ते हैं, गर्मी में नींद नहीं आती, मोबाइल चार्ज करने के लिए बाज़ार जाना पड़ता है।
वादे बहुत, हकीकत नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के वक्त नेता और अधिकारी आते हैं, वादे करते हैं, फिर चले जाते हैं। दुःखी बैगा बताते हैं।
हर बार कहा जाता है कि अबकी बार बिजली ज़रूर आएगी, पर चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं। ग्राम पंचायत ने कई बार आवेदन भेजे, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। गाँव के लोगों का कहना है कि अगर स्थिति नहीं बदली, तो वे जिला मुख्यालय पर धरना देंगे।
सड़क और पानी की भी बड़ी समस्या
बस्ती तक पहुँचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर कच्चा रास्ता है, जो बरसात में कीचड़ में बदल जाता है।
पानी के लिए एकमात्र हैंडपंप गर्मियों में सूख जाता है, तब महिलाओं को आधा किलोमीटर दूर नाले से पानी लाना पड़ता है। गर्मी के दिनों में बुज़ुर्ग और बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। कई बार ग्रामीणों ने स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचने के लिए पैदल रास्ता तय किया।
सरकारी योजनाएँ सिर्फ़ कागज़ों में
केंद्र और राज्य सरकार की सौभाग्य योजना और प्रधानमंत्री ग्राम विद्युतिकरण योजना के बावजूद यह बस्ती अब भी अंधेरे में है। स्थानीय समाजसेवी बताते हैं कि सरकारी रिकॉर्ड में यह गाँव विद्युतीकृत दिखाया गया है, जबकि यहाँ एक भी खंभा नहीं है। अधिकारी बस रिपोर्ट पूरी करने के लिए फोटो खिंचवाते हैं और फाइल बंद कर देते हैं।
अंधेरे में पलते सपने
कक्षा आठ की छात्रा सीमा बैगा कहती हैं कि शाम होते ही अंधेरा हो जाता है। लालटेन की रोशनी में आँखें जलती हैं, पढ़ाई नहीं हो पाती। बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन बिजली के अभाव में उनका भविष्य अंधेरे में है। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि सुधीर कुमार का कहना है कि प्रस्ताव विद्युत विभाग को भेजा गया है। जल्द ही लाइन और ट्रांसफार्मर लगाने की प्रक्रिया शुरू होगी। वहीं विभागीय कर्मचारी का कहना है कि इलाके की पहाड़ी भौगोलिक स्थिति के कारण तकनीकी कठिनाइयाँ हैं। ग्रामीणों का कहना है कि 20 साल से यही बहानी सुन रहे हैं, अब कार्रवाई चाहिए।
अमृत काल में भी अधूरा सपना
आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने वाला देश जब डिजिटल इंडिया की बात कर रहा है, उसी देश में खोंचा बैगा बस्ती जैसे गाँव आज भी लालटेन के सहारे जीवन काट रहे हैं। बुज़ुर्ग रामलाल बैगा की बस एक ही इच्छा है। मरने से पहले अपने घर में बिजली की रोशनी देख लूँ। यह बस्ती बताती है कि जब तक विकास की रोशनी हर घर तक नहीं पहुँचेगी, तब तक आज़ादी का सपना अधूरा रहेगा।
Author: Pramod Gupta
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