गाज़ियाबाद (समर सैम) उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में सामने आया यह मामला न सिर्फ कानून व्यवस्था को झकझोरता है, बल्कि इंसानियत की आत्मा को भी कंपा देता है। बीमा कंपनी से 72 लाख रुपये के क्लेम के लिए एक निर्दोष पागल को कार में ज़िन्दा जला देना, इस युग के सबसे भयावह अपराधों में गिना जाएगा। यह कोई सामान्य धोखाधड़ी नहीं, बल्कि लोभ की आग में रिश्तों और नैतिकता की राख कर देने वाली घटना है। मामला 16 वर्ष पुराना बताया जा रहा है, जब विजयपाल नामक व्यक्ति ने अपने बेटे अनिल को सड़क हादसे में मरा हुआ दिखाकर जीवन बीमा निगम (LIC) से 72 लाख रुपये का क्लेम ले लिया। बीमा कंपनी को यह विश्वास दिलाया गया कि अनिल की कार हादसे में जलकर मौत हो गई है। हकीकत में आगरा जिले में एक मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को फुसलाकर कार में बैठाया गया और फिर पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई। उस निर्दोष की चीखें शायद रात के अंधेरे में गुम हो गईं, लेकिन न्याय की नींद नहीं टूटी थी। अब, 16 साल बाद जब “मरा हुआ बेटा अनिल” ज़िन्दा मिल गया, तो इस जघन्य साज़िश का पूरा राज़ खुल गया। पुलिस ने पिता विजयपाल और बेटे अनिल समेत पाँच लोगों को नामज़द किया है। यह सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि समाज में बढ़ती नैतिक गिरावट और धनलालसा का भयानक उदाहरण है। सोचने वाली बात यह है कि इंसान किस हद तक गिर सकता है जब रुपये की खातिर एक जीवित व्यक्ति को जलाकर उसकी पहचान मिटा दे? बीमा कंपनियों के लिए भी यह मामला एक चेतावनी है कि जांच प्रक्रिया को और मज़बूत किया जाए ताकि ऐसे शैतानी खेल दोबारा न खेले जाएं। आज जब यह राज़ 16 बरस बाद खुला है, तो यह न केवल अपराधियों के लिए सज़ा की शुरुआत है, बल्कि समाज के लिए एक सबक भी, कि लालच की आग में कोई सच्चाई हमेशा के लिए नहीं जल सकती। सच भले देर से सामने आए, मगर आता ज़रूर है।
Author: Pramod Gupta
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