दिल्ली (समर सैम) रायबरेली में दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीटकर हत्या ने न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में व्याप्त जातीय असमानता की गहराई को भी उजागर किया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का पीड़ित परिवार से मिलना केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश है कि अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना आज भी आवश्यक है। राहुल गांधी ने मुलाकात के दौरान कहा कि “अपराध परिवार ने नहीं, उनके खिलाफ हुआ है, उन्हें डराया जा रहा है और घर में बंद रखा गया है।” यह बयान प्रदेश की व्यवस्था पर कटाक्ष भी है और चेतावनी भी कि यदि पीड़ितों को न्याय से वंचित किया गया, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर पड़ जाएगी। उन्होंने मुख्यमंत्री से आरोपियों पर सख्त कार्रवाई और परिवार को सुरक्षा व न्याय देने की मांग की। दलितों पर अत्याचार की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जब सत्ता की मशीनरी संवेदनहीन हो जाती है, तो इन घटनाओं का असर और गहरा हो जाता है। रायबरेली जैसी राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ज़िले में ऐसी घटना होना इस बात का संकेत है कि सामाजिक न्याय की नीतियां केवल कागज़ों पर रह गई हैं। दलित समुदाय आज भी भय, भेदभाव और असुरक्षा की त्रासदी झेल रहा है। यह मामला केवल एक हत्या का नहीं, बल्कि उस मानसिकता का है जो अब भी जाति के नाम पर इंसान की जान लेने से नहीं हिचकिचाती। लोकतंत्र तब ही सशक्त होगा जब हर नागरिक को बराबरी और सुरक्षा की गारंटी मिलेगी। सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह न सिर्फ़ अपराधियों को दंडित करे बल्कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस सामाजिक और प्रशासनिक सुधार भी करे। हरिओम वाल्मीकि को न्याय दिलाना सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का प्रश्न है। अब देखना यह है कि न्याय की यह पुकार प्रशासनिक गलियारों तक पहुँचती है या एक और मामला समय की धूल में दबकर रह जाता है।
Author: Pramod Gupta
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