– सनातन का अपमान नहीं चलेगा और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर फेंक दिया जूता।
समर सैम
आज देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट में जो घटना घटी, उसने पूरे न्याय तंत्र और समाज को झकझोर कर रख दिया। एक वकील, राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गंवई पर जूता फेंक दिया और ज़ोर से नारे लगाए- “सनातन का अपमान नहीं चलेगा!” यह दृश्य न केवल न्यायालय की मर्यादा पर धब्बा है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी है कि समाज में असहमति और आक्रोश अब किस हद तक बढ़ चुका है। सनातन धर्म भारत की आत्मा है- इसकी जड़ें उतनी ही गहरी हैं जितनी इस धरती की सभ्यता। इसका अपमान किसी भी रूप में अस्वीकार्य है, यह भावना हर धर्मनिष्ठ भारतीय के मन में स्वाभाविक रूप से उठती है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि न्याय और कानून की रक्षा करने वाले सर्वोच्च मंच- सुप्रीम कोर्ट- की गरिमा को ठेस पहुँचाना, किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता।वकील, जो संविधान और न्याय के सिद्धांतों के रक्षक माने जाते हैं, उनसे अपेक्षा होती है कि वे अपना विरोध कानूनी और शालीन तरीक़े से व्यक्त करें। अदालत में जूता फेंकना केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि पूरे न्याय व्यवस्था और संविधान के सम्मान पर हमला है। ऐसे कदम समाज में अराजकता और अविश्वास को जन्म देते हैं। यह घटना दो महत्वपूर्ण सवाल खड़ी करती है- पहला, क्या न्यायालयों में धार्मिक आस्था और भावनाओं से जुड़े मामलों के प्रति जनमानस में संवाद की कमी है? और दूसरा, क्या असहमति अब हिंसक प्रदर्शन के रास्ते पर उतर चुकी है? समाज को यह समझना होगा कि सनातन की रक्षा संस्कारों से होती है, आक्रोश से नहीं। इस घटना की निंदा होनी चाहिए, पर साथ ही यह भी आवश्यक है कि जिन कारणों से इस तरह की तीखी प्रतिक्रियाएँ जन्म ले रही हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए। लोकतंत्र में विरोध का अधिकार है, पर वह मर्यादा के भीतर रहकर ही सार्थक बनता है। अंततः, सनातन की गरिमा और न्यायालय की प्रतिष्ठा- दोनों ही भारत की आत्मा के स्तंभ हैं। इन्हें टकराने नहीं, बल्कि साथ लेकर चलने की आवश्यकता है।
Author: Pramod Gupta
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