सोनभद्र (मिर्जापुर) राज्यकर (जीएसटी) विभाग के कुछ अधिकारियों द्वारा पूर्वांचल के पहाड़ों- विशेषकर मिर्जापुर और सोनभद्र में- भूमि व खननाधिकार खरीदने के आरोपों ने विभाग में हलचल पैदा कर दी है। विभागीय सूत्रों के अनुसार यह खरीद-फरोख्त मात्र निवेश नहीं, बल्कि कथित तौर पर अघोषित आय को सफेद करने के एक माध्यम के रूप में भी की जा रही है।
मुख्य तथ्य (सूत्रों के हवाले से)
आरोप है कि विभाग के प्रभावशाली गुटों और कुछ बाहरी बिल्डर्स के माध्यम से डोलो स्टोन, सैंड स्टोन और लाइम स्टोन वाले पहाड़ खरीदे जा रहे हैं। एक पहाड़ की औसत वार्षिक रॉयल्टी को ₹20–30 करोड़ तक आंका जा रहा है (टेंडर व रॉयल्टी दरों के आधार पर)। उदाहरण के तौर पर, सोनभद्र के डोलो स्टोन की रॉयल्टी पहले लगभग ₹160/घन मीटर थी, जो टेंडर प्रक्रियाओं के बाद ₹3,000/घन मीटर तक पहुँचने के दावों में बदल गई। मिर्जापुर के सैंड स्टोन का पूर्व रेट लगभग ₹110/घन मीटर था; ई-टेंडर के बाद रॉयल्टी ₹400–1,000/घन मीटर तक जा चुकी बताई जा रही है।सूत्रों का दावा है कि टेंडर दरों में अत्यधिक वृद्धि (10-20 गुना) कर सिंडीकेट द्वारा पहाड़ों का अधिग्रहण किया जा रहा है और फिर बड़े पैमाने पर सरेंडर/हैंडओवर कर काला धन सफेद किया जा रहा है।
आरोप-मकसद और तरीका (सूत्रों का दावा)
विभागीय सूत्रों के अनुसार यह गेम मुख्यतः अघोषित आय को वैध दिखाने और उसे भू-संपत्ति व खननाधिकार के माध्यम से निवेशित कर देने का है। आरोप है कि कुछ बिल्डरों व एक समूह ने मिलकर यह प्रणाली विकसित की है जिससे टेंडर एवं रॉयल्टी के दाम बाजार वास्तविकता से कई गुना ऊपर चले गए हैं।
प्रभाव व चिंता
सूत्रों का कहना है कि इस तरह की खरीद-फरोख्त न केवल खनन संसाधनों के दुरुपयोग का कारण बनती है, बल्कि स्थानीय संसाधन, पर्यावरण तथा छोटे ठेकेदारों व किसानों के हितों को भी प्रभावित कर सकती है। साथ ही यह कर विभाग की नैतिकता तथा सार्वजनिक धन के उपयोग पर भी प्रश्न उठाती है।
क्या होना चाहिए-जांच की माँग तेज
आरोपों के बाद मामलों की निष्पक्ष जांच व ऑडिट की मांग उठ रही है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि टेंडर प्रक्रियाओं में अनियमितता हुई है या नहीं, और किन–किन अधिकारियों/दलों का इसमें हिस्सा था। स्थानीय जनता, विपक्षी दल व नागरिक संगठनों से भी जांच की अपील की जा रही है।
निष्कर्ष (सावधानीपूर्वक भाषा में)
उपरोक्त आरोप विभागीय सूत्रों पर आधारित हैं और अभी आधिकारिक साक्ष्य सार्वजनिक नहीं हुए हैं। इसलिए किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले स्वतंत्र एवं पारदर्शी जांच आवश्यक है।
Author: Pramod Gupta
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