लद्दाख। लद्दाख की शांति और स्थिरता को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं, और अब इस विवाद की चपेट में आ गए हैं चर्चित पर्यावरणविद् व एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक। शिक्षा और पर्यावरण सुधार के नाम से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान बनाने वाले वांगचुक अब CBI और गृह मंत्रालय की सख्त नजर में हैं। खबरों के मुताबिक, उनके NGO पर विदेशी फंडिंग लेने का आरोप है। यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) के तहत अनिवार्य अनुमति लिए बिना ही बाहर से धन स्वीकार किया। यही कारण है कि CBI ने उनके बैंक खातों और वित्तीय लेन-देन की गहन जांच शुरू कर दी है। मामला सिर्फ पैसों तक ही सीमित नहीं है। गृह मंत्रालय ने हाल ही में लद्दाख में हुई अशांति और हिंसा के पीछे वांगचुक की भूमिका पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस पूरे विवाद में एक और तथ्य चौंकाता है- 6 फरवरी को वांगचुक का पाकिस्तान जाना। सीमाई इलाके के संवेदनशील हालात में यह यात्रा कई सवाल खड़े करती है। क्या वांगचुक समाजसेवा और पर्यावरण के बहाने युवाओं को गुमराह कर रहे हैं? क्या उनका लोकप्रिय चेहरा विदेशी ताकतों के लिए एक साधन बन गया है? निस्संदेह, यह भी सच है कि सोनम वांगचुक ने शिक्षा और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अहम काम किए हैं। लेकिन यदि समाजसेवा की आड़ में विदेशी फंडिंग और संदिग्ध संपर्कों का जाल बुना गया है तो यह सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा अपराध माना जाएगा। सीमावर्ती इलाकों में किसी भी तरह की अशांति या अविश्वास का माहौल देश की अखंडता पर सीधा आघात करता है।इसलिए जरूरी है कि जांच पूरी पारदर्शिता के साथ आगे बढ़े। यदि वांगचुक निर्दोष हैं तो उन्हें बेगुनाही साबित करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अगर आरोपों की पुष्टि होती है तो यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए बड़ा सबक होगा कि लोकप्रियता और सेवा का चेहरा ओढ़कर भी ग़लत मंशा ज्यादा दिन छिपाई नहीं जा सकती। आज भारत के सामने चुनौती केवल बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से भी है। जब देश की सरहदों पर सैनिक मुस्तैद खड़े हैं, तब ज़रूरी है कि सीमावर्ती इलाकों में काम करने वाले सामाजिक संगठन और चेहरे भी पूरी तरह नियम-कानून का पालन करें। सीमाओं की रक्षा सिर्फ हथियारों से नहीं होती, भरोसे और ईमानदारी से भी होती है। और जहां यह भरोसा टूटा, वहीं से खतरों की आहट सुनाई देने लगती है।
Author: Pramod Gupta
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