– बगैर मान्यता के संचालित हो रहे प्राइवेट स्कूलो पर कार्यवाही न होना बना चर्चा का विषय
सोनभद्र। सूत्रों के अनुसार जहां शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सरकार निरंतर सुधार में लगी हुई है वहीं बिना मान्यता के स्कूलों के संचालन पर अधिकारी मौन हैं। देखा जाय तो पूरे जनपद में धड़ल्ले से दर्जनों की संख्या में बगैर मान्यता के विद्यालय संचालित हो रहे हैं। चोपन विकास खंड सहित ओबरा नगर में ही कई विद्यालय बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं। जहां आज हर गली चौराहों पर बोर्ड लगाकर विद्यालय खोलने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।
सरकारी निर्देशों की बात करें तो अब कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों का परमानेंट एजुकेशन नंबर होना अनिवार्य होगा। बिना इस नंबर के ना ही छात्रों का प्रवेश कहीं होगा ना ही शिक्षण के दौरान सरकारी छात्रवृत्ति अथवा अन्य का लाभ मिलेगा। जिन विद्यालयों की कोई मान्यता नही वे भी बड़े बड़े बोर्ड लगाकर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का दावा करते दिख रहे हैं। ऐसे छात्र जिनका परमानेंट एजुकेशन नंबर नही होगा उनका नामांकन कौन से स्कूल में होगा यह कहना काफी मुश्किल है। जबकि बिना परमानेंट एजुकेशन नंबर के टीसी का भी कोई मतलब नही होगा। आने वाले समय में यह परमानेंट एजुकेशन नंबर काफी महत्वपूर्ण हो जायेगा। बिना मान्यता के संचालित विद्यालयों के प्रति जब कोई आवाज उठाता है तो जांच के नाम पर खाना पूर्ति कर मामले को दबा दिया जाता है।
बात चोपन, ओबरा की करें तो यहां अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की बाढ़ सी आ गई है। जिनकी किसी कक्षा एक तक मान्यता अंग्रेजी माध्यम से नही वे भी धड़ल्ले से सीबीएससी बोर्ड का बोर्ड लगाकर विद्यालय चला रहे हैं। उच्च स्तरीय जांच की जाय तो इनकी पोल खुल जायेगी। ऐसे विद्यालय किसी सीबीएसई विद्यालय से अटैच करके अभिभावकों को गुमराह करने का कुचक्र जारी है। यही नहीं किराए के मकान में जहां मान्यता की बात छोड़िए किसी प्रकार का रजिस्ट्रेशन नही वे भी बड़े बड़े दावे करते दिख रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के अलावा हिंदी माध्यम के विद्यालयों के अटैच करके चलाने का खेल पुराना है। जहां सेटिंग गेटिंग का खेल बड़े पैमाने पर चलता है। अटैच के खेल को ऐसे समझ लें कि जैसे किसी विद्यालय की मान्यता अगर नही है तो जिस विद्यालय की मान्यता है वहां से सेटिंग करके वहां से परीक्षा का फॉर्म भरवा देते हैं और शिक्षण कार्य अपने यहां कराते हैं। इस तरह से छात्रों को गुमराह करने का कुचक्र किया जाता है। छात्र ऐसे विद्यालयों के झांसे में आ जाते हैं। ऐसे में छात्रों से फीस के रूप में मोटी रकम वसूली जाती है। यह गोरखधंधा धड़ल्ले से चल रहा है। कार्यवाही के नाम पर केवल खानापूर्ति कर जांच के नाम पर केवल वसूली कर मामले को सुलझा लिया जाता है। अब सरकारी तौर पर पर्सनल एजुकेशन नंबर के महत्व को भी ऐसे अवैध रूप नकार कर धड़ल्ले से अपनी दुकान चला रहे हैं। आने वाले समय में ऐसे विद्यालय को चिंहित करके कार्यवाही नही की गई तो मौन स्वीकृति छात्रों को संकट में डाल सकती है।

Author: Pramod Gupta
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