सोनभद्र (समर सैम) हर्दी गांव के किसानों की नींद अब धमाकों और पानी के बहाव ने छीन ली है। बीसीएस इंटरप्राइजेज की खदान में रोज़ाना की जा रही भारी ब्लास्टिंग और बेतरतीब पानी निकासी ने गांव का माहौल ही बदल दिया है। एक ओर खेतों में दरारें पड़ रही हैं, तो दूसरी ओर निकले पानी से किसानों की ज़मीनें तालाब बन गई हैं। जिन खेतों में कभी लहलहाती फसलें नजर आती थीं, अब वहां सिर्फ गंदा पानी और पत्थरों की कीचड़ भरी परतें हैं। स्थानीय किसान उमाशंकर, रामकिशोर, पंचू और मुन्ना लाल बताते हैं कि सुबह-शाम होने वाली ब्लास्टिंग से पूरा इलाका हिल जाता है। घरों की दीवारें फटने लगी हैं, और बच्चों-बुजुर्गों में डर का माहौल है। वे कहते हैं। “हमारे घरों की नींव तो हिल ही रही है, अब पेट पालने वाली ज़मीन भी डूबने लगी है।” खदान से निकला पानी बिना किसी निकासी व्यवस्था के खेतों में बह रहा है, जिससे करीब 200 बीघा से ज़्यादा फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। किसानों का कहना है कि खदान से आने वाला पानी सिर्फ पानी नहीं, बल्कि जहरीले रासायनिक अवशेषों और पत्थर की धूल से भरा है, जो मिट्टी की उर्वरता को खत्म कर रहा है। कई खेतों में अब फसलें उग नहीं रही हैं, और जिनकी उग भी रही हैं, उनका रंग और स्वाद बदल गया है। गांव वालों ने कई बार पंचायत और खनन विभाग से गुहार लगाई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन की चुप्पी ने ग्रामीणों के ग़ुस्से को और भड़का दिया है। पंचायत प्रतिनिधि भी मानते हैं कि कंपनी को कई बार चेतावनी दी गई, लेकिन उसने नियमों को ताक पर रखकर काम जारी रखा। अब हालात ऐसे हैं कि किसान अपनी रोज़ी-रोटी के लिए धरना देने की तैयारी में हैं। उनका कहना है। “अगर खेत ही डूब जाएंगे तो बच्चों का पेट कैसे भरेगा?” ग्रामीणों ने मांग की है कि बीसीएस इंटरप्राइजेज की मनमानी पर तुरंत रोक लगाई जाए, नुकसान का सर्वे कराया जाए और प्रभावित किसानों को उचित मुआवज़ा दिया जाए। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, जिला प्रशासन ने शिकायत संज्ञान में ली है और जांच टीम भेजने की बात कही है। लेकिन गांव में यह सवाल गूंज रहा है। “क्या जांच आने तक किसानों की बर्बादी जारी रहेगी?” सोनभद्र के खदान क्षेत्रों में यह कोई पहली घटना नहीं है। नियमों की अनदेखी और पर्यावरण की अनदेखी यहां आम बात बन चुकी है। लेकिन इस बार हर्दी गांव के लोगों ने ठान लिया है कि जब तक इंसाफ़ नहीं मिलेगा, तब तक आवाज़ उठती रहेगी। यह मामला सिर्फ एक गांव का नहीं, बल्कि उन सैकड़ों किसानों का दर्द है जिनकी ज़मीनें खदानों के लालच में रोज़ाना डूब रही हैं।

Author: Pramod Gupta
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