दुद्धी/सोनभद्र (राकेश गुप्ता) सनातन धर्म की एक ऐसी परम्परा जहां मानव शरीर पर साक्षात देवी – देवताओं का सवारी होतो है जिसे क्षेत्रीय भाषा में जईया कहा जाता है।उक्त परम्परा शादियों से चली आ रही है जिसे ग्रामीण क्षेत्र के अलावा कस्बों में भी बखूबी देखा जाता है।
आधुनिक युग को चुनौती दे रही जईया की प्राचीन परम्परा आज भी जीवंत है। दुद्धी कस्बे के अलावा खजूरी, बीड़र ,धनौरा,पकरी ग्राम के आलावा अन्य गांव से तीन दिन के जगराते के दौरान नवरात्र के कठिन पूजन व्रत के उपरांत आज पूर्णावती के दिन घर से जईया निकाल देवी माँ के आशीर्वाद से अपने मुख ,जिह्वा ,बाजु आदि में माँ गहने(शांग) पहनकर मन्दिरो में दर्शन के लिए आते रहे जो अल सुबह अपने घर के धाम से दर्जनों लोगो की टोली में बाजे गाजे के साथ करीब दर्जन भर जईया नगर के प्रमुख मार्गों ने नंगे पांव मंदिरों को जाते रहे| इस दौरान मन्दिरों में बाजू व जिह्वा में गहने पहनते देखे गए।जिसे देख लोग दंग रह गए और बड़ी संख्या में लोग जगह -जगह एकत्रित हो कर लोगों की आस्था को निहारते रहे और आशीर्वाद लेते रहे | उधर माँ के भक्तगण अपने घरो में नवरात्र का व्रत विधिन विधान पूजन अर्चन कर सम्पन्न किया वहीं घर की देवी को चढ़ाए प्रसाद को ग्रहण ।आदिवासियों की सदियों से चली आ रही परम्परा आज भी पुरे क्षेत्र में जीवंत है। इस परम्परा में लोग आस्था में सराबोर रहते है।माँ के गहने मुख्य रूप शांग को महिलाएं, बच्चे ,बूढे ,सभी ग्रहण कर कई चमत्कारी दृश्य भी दिखाते है| मान्यता है कि इस दौरान माँ की शक्ति इन पर सवार होती हैं|
