सोनभद्र/ जनपद में नियम विरुद्ध बालू खनन का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। नियम विपरीत बालू खनन से न सिर्फ राजस्व की क्षति हो रही है बल्कि पर्यावरण को भी काफी नुकसान हो रहा है। बेतरतीब नदियों में बालू खनन से नदियों की जलधारा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे जल जीव प्रभावित होते हैं जो कि जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र को क्षति पहुंचाते हैं। कुछ ऐसा ही मामला ओबरा, अगोरी खास, चौरा टोला में देखने को मिला। जहां एक कंपनी द्वारा नदी की बीच धारा में नांव की कतार जोड़कर पाइप के जरिए मुख्य धारा को रोक कर बालू खनन किया जा रहा है। पोकलेन लिफ्टर मशीनों द्वारा नदी को जगह जगह बांधकर उसके पानी को निकाल दिया जाता है। तत्पश्चात अंधाधुंध बालू का खनन किया जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अघोरी खास चौरा में एक कंपनी को 16.19 हेक्टेयर क्षेत्रफल बालू खनन के लिए आवंटित किया गया है। परंतु कंपनी द्वारा संपूर्ण सोन नदी में इस पार से उस पार तक ज्यादा एरिया पर खनन किया जा रहा है। साइड पर चारो तरफ सिमांकन चिन्ह पिलर भी नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी की धारा को अवरुद्ध कर अवैध ढंग से बालू का खनन करना पर्यावरण के दृष्टिकोण से खतरनाक है। नदी की धारा को रोककर जल निकाल देने से उसमें शरण लिए मंगर व मछली आदि बे मौत मारें जा रहें हैं। रास्ते इस बात के लिए गवाह है कि यहां मानक के विपरीत खनन खुलेआम हो रहा है। जिससे न सिर्फ नदी की प्राकृतिक सुंदरता को क्षति पहुंच रही है बल्कि पर्यावरण कि क्षति के साथ ही साथ राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। खनन पट्टे आवंटित किए गए हैं जिसका मानक तय है। यहां पर मानकों की अनदेखी कर पर्यावरणिय क्षती कर व्यापक पैमाने में खनन किया जा रहा है। नियमविरुद्ध खनन पर जिला खान अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि सोन नदी में ही खनन पट्टे आवंटित किए गए हैं। नदी में सिमांकन चिन्ह पिलर नहीं लगाएं जा सकते और नदी मध्य धारा के प्रवाह को रोकने और अस्थाई सड़क निर्माण पाया जाता है तो नियमानुसार कार्रवाई कि जाएगी। तटीय क्षेत्रों के ग्रामीण जनों का कहना है कि इस शोर गुल से जीवन जीना हराम हो गया है। हम सब की परेशानी अनसुनी कि जा रही है। वहीं स्थानीय ग्रामीणजनों ने मांग करते हुए कहा है कि जिलाधिकारी एवं जिम्मेदार मोहकमा द्वारा जांचकर कार्रवाई करें ताकि पर्यवारण एवं जलीय जीव जंतुओं को बचाया जा सके।
Author: Pramod Gupta
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