सोनभद्र (समर सैम) चक्रीय तूफ़ान ‘मोंथा’ ने जनपद में जो कहर बरपाया है, उसने पूरे क्षेत्र को दहला दिया है। तेज़ हवाओं, भारी वर्षा और लगातार कई घंटों तक चले तूफ़ानी झोंकों ने गाँवों से लेकर खदान क्षेत्रों तक जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। सैकड़ों कच्चे-पक्के मकान धराशायी हो गए, सड़कों पर बड़े-बड़े पेड़ और बिजली के खंभे गिर गए। कई जगहों पर जनहानि व पशुहानि की खबरें हैं। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं, जिससे किसानों की सालभर की मेहनत पर पानी फिर गया है। यह आपदा केवल प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवीय लापरवाही की भी एक चेतावनी है। प्रशासनिक तैयारी नाममात्र की रही न तो लोगों को समय पर सचेत किया गया, न ही आपदा प्रबंधन दल सक्रिय दिखे। जिन क्षेत्रों में पहले से कमजोर बिजली और संचार व्यवस्था थी, वहाँ तूफ़ान ने स्थिति और भयावह बना दी। अब जबकि नुकसान हो चुका है, सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि राहत और पुनर्वास कार्य युद्धस्तर पर किए जाएँ। जनपद सोनभद्र का भौगोलिक स्वरूप पहाड़ी इलाक़े, खदानें और घने वन क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ आपदा के समय राहत पहुँचाना चुनौतीपूर्ण होता है। फिर भी यह प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि हर प्रभावित परिवार तक मदद पहुँचे, मुआवज़े की प्रक्रिया पारदर्शी और त्वरित हो, तथा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट्स तैनात की जाएँ। मोंथा तूफ़ान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब केवल “आपदा के बाद कार्रवाई” नहीं, बल्कि “आपदा से पहले तैयारी” की नीति पर ज़ोर देना होगा। सोनभद्र जैसे संवेदनशील जिलों में स्थायी आपदा प्रबंधन केंद्र, सुरक्षित शरण स्थल, और चेतावनी प्रसारण प्रणाली स्थापित करना समय की माँग है। जनता अब उम्मीद लगाए बैठी है कि सरकार इस तबाही को केवल आँकड़ों तक सीमित न रखे, बल्कि ज़मीनी स्तर पर राहत पहुँचाकर यह साबित करे कि प्रशासन जनता के साथ है।
Author: Pramod Gupta
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