समर सैम
बागपत से आई यह खबर न केवल दिल दहला देने वाली है, बल्कि समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक गहरी चेतावनी भी छोड़ती है। मस्जिद के इमाम मौलाना इब्राहिम की पत्नी इसराना (32 वर्ष) और उनकी दो मासूम बेटियाँ सोफिया (5 वर्ष) और सुमय्या (3 वर्ष) की बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। वारदात में धारदार हथियार के इस्तेमाल के भी सबूत मिले हैं। यह तीन ज़िंदगियाँ उस वक्त बुझा दी गईं, जब घर का मुखिया देवबंद में एक धार्मिक कार्यक्रम जिसमें अफगानिस्तान के विदेश मंत्री शामिल थे। शरीक होने गया हुआ था। मौलाना इब्राहिम, जो मूल रूप से मुज़फ्फरनगर के गाँव सुन्ना के निवासी हैं, बीते तीन साल से इसी मस्जिद में इमाम के रूप में कार्यरत थे। जिस कमरे में यह वारदात हुई, वह मस्जिद की छत पर बना उनका पारिवारिक निवास था। इस त्रासदी का सबसे भयावह पहलू यह है कि हत्या से ठीक पहले मस्जिद परिसर में लगे CCTV कैमरे बंद कर दिए गए, जो कि सुनियोजित साजिश की ओर स्पष्ट संकेत करता है।यह घटना केवल एक परिवार पर हुए अत्याचार की नहीं, बल्कि इंसानियत की आत्मा पर हुए हमले की दास्तान है। एक माँ और दो मासूम बेटियों को इस क्रूरता से मार देना यह दिखाता है कि समाज में दरिंदगी किस हद तक बढ़ चुकी है। सवाल यह भी उठता है कि धार्मिक स्थलों में रह रहे परिवार भी अब कितने सुरक्षित हैं? स्थानीय प्रशासन ने जाँच शुरू कर दी है, लेकिन अब आवश्यक है कि यह मामला महज़ औपचारिक कार्रवाई तक सीमित न रहे। हत्यारों को जल्द से जल्द बेनकाब किया जाए, ताकि समाज में कानून पर विश्वास बना रहे। मौलाना इब्राहिम की अनुपस्थिति में हुई यह वारदात कई सवाल छोड़ गई है। क्या यह निजी रंजिश का परिणाम थी, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है? यह जिम्मेदारी पुलिस और खुफिया एजेंसियों की है कि वे इस रहस्य से परदा उठाएँ और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाएँ।बागपत की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब धार्मिक स्थल और इबादतगाह भी सुरक्षित नहीं बचे, तो आखिर इंसानियत कहाँ सुरक्षित है? समाज के हर वर्ग को मिलकर इस अमानवीय प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी, वरना यह खामोशी कल किसी और के घर में मातम बनकर लौटेगी। लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहाँ अकेले हमारा मकान थोड़ी है…
Author: Pramod Gupta
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