बीजपुर/सोनभद्र (विनोद गुप्त)शिक्षा को समाज का आधार स्तंभ माना जाता है लेकिन हाल के कुछ वर्षों में यह एक व्यवसायिक उद्योग बनता जा रहा है।कतिपय विद्यालय और शिक्षण संस्थान अब शिक्षा प्रदान करने के साथ अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की मानसिकता से भी प्रेरित दिखाई दे रहे हैं। परिणामस्वरूप विद्यार्थियों और अभिभावकों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।कई निजी स्कूल और कोचिंग संस्थान नए विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए बड़े बड़े दावे करते हैं।एडमिशन के समय उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षा आधुनिक सुविधाएं अनुभवी शिक्षक और 100% सफलता की गारंटी जैसे झूठे प्रलोभन दिए जाते हैं।लेकिन वास्तविकता अक्सर इन दावों से बिल्कुल अलग होती है।कुछ अभिभावक कहते हैं कि स्कूल में प्रवेश के समय हमें यह बताया गया था कि हमारे बच्चे को स्मार्ट क्लास खेल सुविधाएं विशेष शिक्षण तकनीकें मिलेंगी लेकिन कुछ महीनों में ही पता चला कि यह सब सिर्फ विज्ञापन तक ही सीमित था।कुछ विद्यालय और शिक्षण संस्थान परीक्षा के दौरान अलग-अलग बहाने से अघोषित शुल्क वसूलते हैं।चाहे वह प्रोजेक्ट वर्क हो या फिर परीक्षा शुल्क के रूप में अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल दिया जाता है।बच्चों की परीक्षा से ठीक पहले स्कूल में ऐच्छिक गतिविधियों के नाम पर मोटी रकम की मांग की जाती है जब इसका विरोध करते हैं तो कहा जाता है कि यह अनिवार्य है सबसे गंभीर समस्या (अटैचमेंट)यानी बोर्ड परीक्षा में नामांकन के दौरान उत्पन्न होती है।स्कूल इस प्रक्रिया के नाम पर अभिभावकों से बड़ी राशि वसूलते हैं शुल्क इतना अधिक होता है कि मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए इसे वहन करना कठिन हो जाता है।शिक्षा का व्यवसायी करण अभिभावकों और विद्यार्थियों के लिए चिंता का विषय बन गया है।शिक्षा विभाग को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और शिक्षा नीति को पारदर्शी बनाना चाहिए।वहीं अभिभावकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है?क्यों कि जब आबरू के रखवाले ही लुटेरों की टीम में शामिल हो तब किसी भी प्रकार से न्याय की आस छोड़ खुद आर्थिक ठगी का शिकार होने से बचना चाहिए।
